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Rahul Dev Burman biography in Hindi.आर डी बर्मन की जीवनी।

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राहुल देव बर्मन हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध संगीतकार थे। इन्हें पंचम या ‘पंचमदा’ नाम से भी पुकारा जाता था। मशहूर संगीतकार सचिन देव बर्मन व उनकी पत्नी मीरा की ये इकलौती संतान थे। अपनी अद्वितीय सांगीतिक प्रतिभा के कारण इन्हें विश्व के सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों में एक माना जाता है। माना जाता है कि इनकी शैली का आज भी कई संगीतकार अनुकरण करते हैं। पंचमदा ने अपनी संगीतबद्ध की हुई 18 फिल्मों में आवाज़ भी दी। भूत बंगला (1965 ) और प्यार का मौसम (1969) में इन्होने अभिनय भी किया।

आर. डी. बर्मन का प्रारंभिक जीवन (Early Life of R. D. Burman)

राहुल देव बर्मन का जन्म कोलकाता में 27 जून 1939 को हुआ था. इनके पिता सचिन देव बर्मन हिंदी सिनेमा के एक बड़े संगीतकार थे. घर में संगीत का पारंपरिक माहौल होने कि वजह से बचपन से ही राहुल ने संगीत की बारीकियों को सीखना शुरू कर दिया था. बचपन में उनके साथ घटा एक वाकया बहुत ही दिलचस्प है जिससे उनका नाम ‘पंचम’ पड़ गया था. कहा जाता है कि बचपन में जब वह रोते थे तो उनके मुंह से संगीत का पांचवां स्वर यानि ‘पा’ निकलता था, इसलिए घरवालों ने उनका नाम ‘पंचम’ रख दिया. परन्तु एक दूसरी कहानी के अनुसार राहुल के पंचम स्वर में रोने की पहचान प्रसिद्ध अभिनेता अशोक कुमार ने की थी और उन्होंने ही राहुल को ‘पंचम’ नाम दिया था. हालाँकि कहा यह भी जाता है कि बचपन में राहुल की नानी ने उनका उपनाम ‘टुब्लू’ रखा था. बहरहाल उनके ‘पंचम’ नाम पड़ने की कहानी जो भी रही हो, परन्तु वह आगे जाकर बॉलीवुड में भी ‘पंचम’ यानि ‘पंचम दा’ के नाम से ही प्रसिद्ध हुए.

प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के लिए राहुल को कोलकाता के ‘सेंट जेवियर्स स्कूल’ में दाखिल कराया गया. फिर माध्यमिक शिक्षा के लिए वह कोलकाता के ही सरकारी स्कूल ‘बालिगुंगे हाई स्कूल’ में दाखिल हुए. इसी दौरान सिर्फ नौ साल की उम्र में राहुल ने अपना पहला गाना ‘ऐ मेरी टोपी पलट के आ…’ को संगीत के सुरों में ढाला था. बाद में वर्ष 1956 में उनके पिता सचिन देव बर्मन ने इस गाने को फिल्म ‘फंटुश’ में उपयोग किया था. केवल इतना ही नहीं, इस छोटी उम्र में ही उन्होंने एक ऐसी धुन हिंदी सिनेमा को दी थी जिसे लोग आज भी बरबस गुनगुना उठते हैं और वह धुन थी ‘सर जो तेरा चकराए..’. इस धुन को भी सचिन देव बर्मन ने अगले ही वर्ष 1957 में प्रसिद्ध अभिनेता-निर्देशक गुरुदत्त की फिल्म ‘प्यासा’ में उपयोग किया था. बड़े होने पर मुंबई में आर. डी. बर्मन ने उस्ताद अली अकबर खान से सरोद और समता प्रसाद से तबला बजाने का प्रशिक्षण लिया और पिता का सहायक बनकर संगीत की दुनिया में कदम बढ़ाने लगे. हालाँकि आर. डी. बर्मन तत्कालीन संगीतकार सलिल चौधरी को अपना गुरु मानते थे.

आर डी बर्मन जीवन की टाइमलाइन।

राहुल कोलकाता में जन्मे थे। कहा जाता है बचपन में जब ये रोते थे तो पंचम सुर की ध्वनि सुनाई देती थी, जिसके चलते इन्हें पंचम कह कर पुकारा गया। कुछ लोगों के मुताबिक अभिनेता अशोक कुमार ने जब पंचम को छोटी उम्र में रोते हुए सुना तो कहा कि ‘ये पंचम में रोता है’ तब से उन्हें पंचम कहा जाने लगा। इन्होने अपनी शुरूआती शिक्षा बालीगंज गवर्नमेंट हाई स्कूल कोलकत्ता से ली। बाद में उस्ताद अली अकबर खान से सरोद भी सीखा।

इनके पिता सचिन देव बर्मन, जो खुद हिन्दी सिनेमा के बड़े संगीतकार थे, ने बचपन से ही आर डी वर्मन को संगीत की दांव-पेंच सिखाना शुरु कर दिया था। राहुल देव बर्मन ने शुरुआती दौर की शिक्षा बालीगुंगे सरकारी हाई स्कूल, कोलकाता से प्राप्त की। केवल नौ बरस की उम्र में उन्होंने अपना पहला संगीत ”ऐ मेरी टोपी पलट के” को दिया, जिसे फिल्म “फ़ंटूश” में उनके पिता ने इस्तेमाल किया। छोटी सी उम्र में पंचम दा ने “सर जो तेरा चकराये …” की धुन तैयार कर लिया जिसे गुरुदत्त की फ़िल्म “प्यासा” में ले लिया गया।

एस.डी. बर्मन हमेशा आर. डी. बर्मन को अपने साथ रखते थे। इस वजह से आर. डी. बर्मन को लोकगीतों, वाद्यों और आर्केस्ट्रा की समझ बहुत कम उम्र में हो गई थी। जब एस.डी. ‘आराधना’ का संगीत तैयार कर रहे थे, तब काफ़ी बीमार थे। आर. डी. बर्मन ने कुशलता से उनका काम संभाला और इस फ़िल्म की अधिकतर धुनें उन्होंने ही तैयार की। आर. डी. बर्मन को बड़ी सफलता मिली ‘अमर प्रेम’ से। ‘चिंगारी कोई भड़के’ और ‘कुछ तो लोग कहेंगे’ जैसे यादगार गीत देकर उन्होंने साबित किया कि वे भी प्रतिभाशाली हैं

आर. डी. बर्मन के पिता एस. डी. बर्मन (सचिन देव बर्मन) भी जाने माने संगीतकार थे और उन्होंने अपने करियर की शुरुआत उनके सहायक के रूप में की थी। आर. डी. बर्मन प्रयोगवादी संगीतकार के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने पश्चिमी संगीत को मिलाकर अनेक नई धुनें तैयार की थीं। उन्होंने अपने करियर के दौरान लगभग 300 फ़िल्मों में संगीत दिया।

एस. डी. बर्मन की वजह से आर. डी. बर्मन को फ़िल्म जगत के सभी लोग जानते थे। पंचम दा को माउथआर्गन बजाने का बेहद शौक़ था। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल उस समय ‘दोस्ती’ फ़िल्म में संगीत दे रहे थे। उन्हें माउथआर्गन बजाने वाले की जरूरत थी। वे चाहते थे कि पंचम यह काम करें, लेकिन उनसे कैसे कहें क्योंकि वे एक प्रसिद्ध संगीतकार के बेटे थे। जब यह बात पंचम को पता चली तो वे फौरन राजी हो गए। महमूद से पंचम की अच्छी दोस्ती थी। महमूद ने पंचम से वादा किया था कि वे स्वतंत्र संगीतकार के रूप में उन्हें ज़रूर अवसर देंगे। ‘छोटे नवाब’ के ज़रिये महमूद ने अपना वादा निभाया।

आर डी को क़रीब से जानने वाले लोग बताते हैं कि शुरुआत से ही उनमें विलक्षण प्रतिभा थी. उन्होंने अपने पिता एसडी बर्मन (सचिनदेव बर्मन) के कई गानों को रिकॉर्ड किया लेकिन क्रेडिट नहीं लिया. आर डी बर्मन की पत्नी और मशहूर गायिका आशा भोंसले बताती हैं, “मैंने एक बार पंचम से पूछा कि तुम अपना नाम क्यों नहीं लेते. तो वो बोले, कोई बात नहीं. पिताजी के लिए ही तो काम कर रहा हूं. मेरा नाम ना भी आए तो क्या फर्क पड़ता है.

चुरा लिया है तुमने जो दिल को, नजर नहीं चुराना सनम.. जैसे अपनी मधुर संगीत लहरियों से श्रोताओं का दिल चुराने वाले महान संगीतकार राहुल देव बर्मन को हिंदी फिल्म संगीत की दुनिया में सर्वाधिक प्रयोगवादी एवं प्रतिभाशाली संगीतकार के रूप में आज भी याद किया जाता है. संगीत के साथ प्रयोग करने में माहिर आरडी बर्मन पूरब और पश्चिम के संगीत का मिश्रण करके एक नई धुन तैयार करते थे. हालांकि इसके लिए उनकी काफी आलोचना भी हुआ करती थी. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने संगीत की दुनिया में अपनी एक अहम जगह बनाई.

महज नौ बरस की उम्र में उन्होंने अपना पहला संगीत ‘ऐ मेरी टोपी पलट के आ’ को दिया, जिसे फिल्म ‘फंटूश’ में उनके पिता ने इस्तेमाल किया. छोटी सी उम्र में पंचम दा ने ‘सर जो तेरा चकराये’ की धुन तैयार कर ली जिसे गुरुदत्त की फिल्म ‘प्यासा’ में ले लिया गया. ‘प्यासा’ फिल्म का यह गाना आज भी लोग पसंद करते हैं. इसके बाद वे लगातार 33 सालों तक फिल्मों में सक्रिय रहे. इस दौरान पंचम दा ने ‘रात कली एक ख्वाब में आई’ [बुड्ढ़ा मिल गया], ‘पिया तू अब तो आजा’ [कारवा], ‘दम मारो दम’ [हरे रामा हरे कृष्णा] और ‘रैना बीती जाए’ [अमर प्रेम] जैसे संगीत के नायाब नगीने बॉलीवुड को दिए. आर डी वर्मन ने भारतीय सिनेमा को हर तरह का और हर दौर का संगीत दिया था. इसीलिए आज भी उनका संगीत जवान है, गाने अमर हैं.

आरडी ने उस्ताद अली अकबर खान (सरोद) और सामता प्रसाद (तबला) से प्रशिक्षण लिया। वे संगीतकार सलिल चौधरी को भी अपना गुरु मानते थे। पिता के सहायक के रूप में भी उन्होंने काम किया है। राहुल देव बर्मन को सबसे पहले निरंजन नामक फिल्मकार ने ‘राज’ के लिए 1959 में साइन किया था। आरडी ने दो गाने रिकॉर्ड भी किए। पहला गाना आशा भोसले और गीता दत्त ने तथा दूसरा शमशाद बेगम ने गाया था। यह फिल्म बाद में बंद हो गई। आरडी को पहला अवसर मेहमूद ने दिया जिनसे आरडी की अच्छी दोस्ती थी।

मेहमूद ने पंचम से वादा किया था कि वे स्वतंत्र संगीतकार के रूप में उन्हें जरूर अवसर देंगे। ‘छोटे नवाब'(1961)के जरिये मेहमूद ने अपना वादा निभाया।  अपनी पहली फिल्म में ‘घर आजा घिर आए बदरा’ गीत आरडी, लता मंगेशकर से गवाना चाहते थे और लता इसके लिए राजी हो गईं। आरडी चाहते थे कि लता उनके घर आकर रिहर्सल करें। लता धर्मसंकट में फँस गईं क्योंकि उस समय उनका कुछ कारणों से आरडी के पिता एसडी बर्मन से विवाद चल रहा था।

लता उनके घर नहीं जाना चाहती थीं। लता ने आरडी के सामने शर्त रखी कि वे जरूर आएँगी, लेकिन घर के अंदर पैर नहीं रखेंगी। मजबूरन आरडी अपने घर के आगे की सीढि़यों पर हारमोनियम बजाते थे और लता गीत गाती थीं। पूरी रिहर्सल उन्होंने ऐसे ही की। आरडी बर्मन को पहला बड़ा मौका विजय आनंद निर्देशित फिल्म ‘तीसरी मंजिल’ से मिला। फिल्म के हीरो शम्मी कपूर और निर्माता नासिर हुसैन नहीं चाहते थे कि आरडी संगीत दे। निर्देशक के जोर देने पर उन्होंने तीन-चार धुनें सुनीं और सहमति दे दी। फिल्म का संगीत सुपरहिट रहा और आरडी के पैर बॉलीवुड में जम गए।

कहा तो यह भी जाता है कि किशोर कुमार का फिल्‍म ‘अराधना’ का सुपरहिट गाना ‘मेरे सपनों की रानी’ असल में पंचम दा की ही धुन थी, हालांकि फिल्‍म का संगीत उनके पिता एसडी बर्मन ने दिया था. 1970 के दशक में पंचम दा खूब हिट हुए. किशोर कुमार की आवाज, राजेश खन्‍ना की एक्टिंग और पंचम दा के म्‍यूजिक ने इस दशक में खूब वाहवाही बटोरी. 1970 में कटी पतंग के सुपरहिट संगीत से यह जोड़ी शुरू हुई और फिर रुकने का नाम नहीं लिया.

 70 में पंचम दा ने देव आनंद की फिल्‍म ‘हरे रामा हरे कृष्‍णा’ के लिए संगीत दिया और आशा भोंसले ने ‘दम मारो दम’ गाना गाया, जो जबरदस्‍त हिट रहा. यह गाना फिल्‍म पर भारी न पड़ जाए इसी डर से देव आनंद ने पूरा गाना फिल्‍म में नहीं रखा. इसके बाद 1971 में भी आरडी ने कई जबरदस्‍त हिट गाने दिए. 1972 में ‘सीता और गीता’, ‘रामपुर का लक्ष्‍मण’, ‘बोम्‍बे टू गोवा’, ‘अपना देश’, ‘परिचय’ जैसी फिल्‍मों में हिट संगीत दिया.

इसके बाद 1973 में ‘यादों की बारात’, 1974 में ‘आप की कसम’, 1975 में ‘शोले’ और ‘आंधी’, 1978 में ‘कसमें वादे’, 1978 में ‘घर’, 1979 में ‘गोलमाल’, 1980 में ‘खूबसूरत’, 1981 में ‘सनम तेरी कसम’ जिसके लिए उन्‍हें फिल्‍मफेयर अवॉर्ड मिला, ‘रॉकी’, ‘मासूम’, ‘सत्ते पे सत्ता’, ‘लव स्‍टोरी’ जैसी फिल्‍मों में भी पंचम दा ने अपने संगीत का जलवा बिखेरा.

शिक्षा (RD Burman Education)

राहुल ने पश्चिम बंगाल में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। सर जो तेरा टकराये गीत के तराने की रचना भी आर.डी. बर्मन ने बचपन में ही की थी, उनके पिता ने इसका उपयोग गुरु दत्ता की फिल्म प्यासा (1957) में किया था।

मुंबई में बर्मन ने उस्ताद अली अकबर खान (सरोद) और समता प्रसाद (तबला) से प्रशिक्षण लिया था। वे सलिल चौधरी को अपना गुरु मानते थे। उन्होंने अपने पिता का असिस्टेंट बनकर और कभी-कभी ऑर्केस्ट्रा में हार्मोनिका बजाकर भी सेवा की है।

निजी जीवन (RD Burman Personal Life)

उन्होंने 1966 में रीता पटेल से शादी की, लेकिन शादी ज्यादा टिक नहीं पाई और 1971 में उनका तलाक हो गया। 1975 में उनके पिता का निधन हो गया।

इसके बाद गायिका आशा भोंसले से बौर्मन साहब की नजदीकियां बढ़ने लगी। 1980 में उन्होंने आशा भोसले से शादी कर ली। दोनों ने साथ में ढेरों सुपरहिट गीतों को रिकॉर्ड किया और बहुत से लाइव प्रदर्शन किये, लेकिन जीवन के आखरी समय में उनका साथ आशा भोंसले से भी छूट गया।

करियर (RD Burman Career)

उनके प्रोफेशनल करियर की शुरुआत 1958 में हुई। उन्होंने “सोलवा साल” (1958), “चलती का नाम गाड़ी” (1958), और “कागज़ का फूल” (1957), तेरे घर के सामने (1963), बंदिनी (1963), जिद्दी (1964), गाइड (1965) और तीन देवियाँ (1965) शामिल है। अपने पिता की हिट रचना ‘है अपना दिल तो आवारा’ के लिए बर्मन ने माउथ ऑर्गन भी बजाय था। 

जैसी फिल्मों में अपने पिता की सहायता करना शुरू किया। संगीत निर्देशक के रूप में उनकी पहली फिल्म गुरुदत्त की फिल्म “राज़” (1959) थी। दुर्भाग्य से, इस फिल्म निर्माण के बीच में ही बंद हो गया। एक संगीत निर्देशक के रूप में उनकी पहली रिलीज़ फिल्म महमूद की “छोटे नवाब” (1961) थी। वहीं से उनका करियर मजबूती से शुरू हुआ।

1959 में गुरु दत्त के असिस्टेंट द्वारा निर्देशित फिल्म ‘राज’ में बर्मन ने संगीत निर्देशक के रूप काम किया था। जबकि, यह फिल्म कभी पूरी बन ही नही पायी। गुरु दत्त और वहीदा रहमान फिल्म के बोल शैलेन्द्र ने लिखे थे। इसके बंद होने से पहले बर्मन ने फिल्म के लिए दो गाने रिकॉर्ड किये थे। जिसका पहला गाना गीता दत्त और आशा भोंसले ने मिलकर गाया था और दुसरे गाने को शमशाद बेगम ने मौखिक रूप से गाया था।

1960 से 1990 तक बर्मन ने तक़रीबन 331 फिल्मो के लिए संगीत स्कोर की रचना की थी। हिंदी फिल्म उद्योग में वे संगीतकार के रूप में ज्यादा सक्रीय थे और अपनी कुछ रचनाओ को उन्होंने मौखिक रूप में भी बनाया है।

बर्मन ने मुख्यतः आशा भोंसले और किशोर कुमार के साथ काम किया है और ऐसे बहुत से गानों को गाया है, जिनसे वे प्रसिद्ध हुए। लता मंगेशकर द्वारा गाये हुए बहुत से गीतों की रचना उन्होंने ही की है। वर्तमान पीढ़ी के संगीत निर्देशकों पर उनका काफी प्रभाव पड़ा है और आज भी उनके गीत भारत में प्रसिद्ध है।

फिल्म संगीत निर्देशक के रूप में बर्मन की पहले सफल फिल्म तीसरी मंजिल (1966) रही। इसके लिए बर्मन ने गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी को उनके नाम की सिफारिश नासिर हुसैन के पास करने का श्रेय दिया था, जो फिल्म के प्रोड्यूसर और लेखक थे। तीसरी मंजिल में कुल 6 गाने थे, इन सभी गानों को मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखा है और मोहम्मद रफ़ी ने गाया है। इनमे से चार गानों को उन्होंने आशा भोसले के साथ गाया था।

इसके बाद नासिर ने बर्मन और गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी को अपने आने वाली 6 फिल्मो के लिए साईन कर लिया था, जिनमे मुख्य रूप से, बहारो के सपने (1967), प्यार का मौसम (1969) और यादो की बारात (1973) जैसी फिल्मे शामिल है।

बर्मन की पड़ोसन (1968) फिल्म के संगीत के लिए काफी तारीफ़ की गयी थी। इस दौरान वे अपने पिता के असिस्टेंट के पद पर भी कार्यरत थे, जिनके साथ इसके बाद उन्होंने ज्वेल थीफ (1967) और प्रेम पुजारी (1970) जैसी फिल्मे की है।

आराधना (1969) फिल्म के किशोर कुमार के सुपरहिट गीत ‘मेरे सपनो की रानी’ का श्रेय उनके पिता को दिया जाता है, ऐसी अफवाह फैली थी की यह बर्मन की रचना है। इसी फिल्म का एक और गीत ‘कोरा कागज़ था यह मन मेरा’ भी उन्ही की रचना थी।

ऐसा माना जाता है की जब एस. डी. बर्मन की फिल्म के संगीत की रिकॉर्डिंग के समय तबियत ख़राब हुई थी, तब आर.डी. बर्मन ने ही इसे अपने हाँथो में लेकर पूरा किया। इस तरह उन्हें फिल्म का एसोसिएट कंपोजर बनाया गया था।

70 के दशक की शुरुआत से आरडी बर्मन संगीत निर्देशक के रूप में बॉलीवुड की सबसे बड़ी मांग बन गए. इसके बाद “अमर प्रेम” (1971), “हरे रामा हरे कृष्णा” (1971), “सीता और गीता” (1972), और “शोले” (1975) के संगीत निर्देशक के रूप में इस तरह की हिट फिल्मों का प्रतिनिधित्व किया गया।

फिल्म हम किसीसे कम नही (1977) में बर्मन द्वारा रचित ‘क्या हुआ तेरा वादा’ गीत के लिए मोहम्मद रफ़ी को बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर का राष्ट्रिय फिल्म अवार्ड मिला था। इसके बाद उन्होंने बहुत सी फिल्मो के लिए लोकप्रिय संगीत की रचना की, उन फिल्मो में मुख्य रूप से कसमे वादे (1978), घर (1978), गोलमाल (1979) और ख़ूबसूरत (1980) शामिल है। 1981 में उन्होंने फिल्म रॉकी, सत्ते पे सत्ता और लव स्टोरी के लिए लोकप्रिय संगीत की रचना की थी।

आर. डी. बर्मन ने राजेश खन्ना और किशोर कुमार के साथ लगभग 32 फिल्मों में काम किया है। उस दौर में इन तीनों की तिकड़ी को सफलता का पर्याय माना जाने लगा था। इससे इत्तर एक तथ्य यह भी है कि आर. डी. बर्मन ने राजेश खन्ना की 40 फिल्मों में संगीत दिया है।

80 के दशक में इन्होंने कई नवोदित गायकों को ब्रेक देकर हिंदी सिनेमा से परिचय कराया था। इनमें कुमार शानू, अभिजीत और मोहम्मद अज़ीज़ का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। 80 के दशक के उतरार्घ में आर. डी. बर्मन के संगीत का जादू कमजोर पड़ने लगा था।

इसकी वजह से हिंदी सिनेमा में वह एक बड़ा बदलाव था जिसमे गीत और संगीत की भूमिका नदारद होती जा रही थी और फिल्म का कथानक, मारधार और हिंसा के इर्द गिर्द घूमने लगा था. इसके अलावा बप्पी लाहरी जैसे संगीतकारों के डिस्को स्टाइल से संगीत के बोल और धुन भी बदलने लगे थे। इस बदलाव में अपने आपको ढालना आर. डी. के लिए संभव नहीं था। अतः फिल्म निर्माता उनसे दूर होने लगे।

सिंगर कुमार सानु को उनका पहला ब्रेक बर्मन ने ही फिल्म यह देश (1984) में कमल हसन की आवाज़ देकर दिया था। अभिजीत को भी उनका मुख्य ब्रेक बर्मन ने ही आनंद और आनंद (1984) में दिया था। जबकि काफी समय पहले ही उन्होंने अपना डेब्यू कर लिया था, लेकिन फिर भी हरिहरण ने उन्हें पहली बात कविता कृष्णामूर्ति के साथ में गाये फिल्म बॉक्सर (1984) के गीत ‘है मुबारक आज का दिन’ में जाना था, जिसे बर्मन ने ही कंपोज़ किया था। 1985 में मोहम्मद अज़ीज़ ने बर्मन के तहत ही फिल्म शिवा का इंसाफ (1985) में डेब्यू किया था।

बाद में वर्ष 1986 में आर. डी. बर्मन ने फिल्म ‘इजाज़त’ के लिए संगीत की रचना की और उनका यह संगीत उनके द्वारा की गई सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में शामिल हो गया। इस फिल्म का गीत ‘मेरा कुछ सामान’ आलोचकों की जुबां पर छा गया और सर्वत्र उसकी प्रशंसा हुई। परन्तु इस गीत के लिए आशा भोंसले को जहाँ सर्वश्रेष्ठ गायिका और गुलज़ार को सर्वश्रेष्ठ गीत के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया वहीँ आर. डी. बर्मन को कुछ नहीं मिला। संभवतः वे इस पीड़ा को सहन नहीं कर सके और 1988 में उन्हें दिल का आघात लगा और बाईपास सर्जरी करानी पड़ी. इसके बाद वर्ष 1989 में विधु विनोद चोपड़ा ने उन्हें अपनी फिल्म ‘परिंदा’ के लिए संगीत निर्देशन की जिम्मेदारी दी थी।

राजेश खन्ना, किशोर कुमार और आर.डी. बर्मन की तिकड़ी ने तक़रीबन 32 फिल्मो में एकसाथ काम किया है और यह सभी फिल्मे और उनके गीत लोकप्रिय हुए थे। यह तीनो आपस में अच्छे दोस्त भी थे, आर.डी. बर्मन ने राजेश खन्ना की 40 फिल्मो के लिए संगीत की रचना की है।

अवार्ड और सम्मान (RD Burman Awards and Honors)

1972 में फिल्म कारवाँ के लिए बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर अवार्ड मिला।

1974 में फिल्म यादों की बारात के लिए बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर अवार्ड मिला।

1975 में फिल्म आप की कसम के लिए बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर अवार्ड मिला।

1976 में फिल्म खेल खेल में के लिए बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर अवार्ड मिला।

1976 में फिल्म शोले के लिए बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर अवार्ड मिला।

1976 में फिल्म ‘महबूबा महबूबा’ के लिए बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर अवार्ड मिला।

1977 में फिल्म महबूबा के लिए बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर अवार्ड मिला।

1978 में फिल्म हम किसीसे कम नही के लिए बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर अवार्ड मिला।

1978 में फिल्म किनारा के लिए बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर अवार्ड मिला।

1979 में फिल्म शालीमार के लिए बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर अवार्ड मिला।

1981 में फिल्म शान के लिए बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर अवार्ड मिला।

1982 में फिल्म लव स्टोरी के लिए बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर अवार्ड मिला।

1983 में फिल्म सनम तेरी कसम के लिए बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर अवार्ड मिला।

1984 में फिल्म मासूम के लिए बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर अवार्ड मिला।

1984 में फिल्म बेताब के लिए बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर अवार्ड मिला।

1985 में फिल्म जवानी के लिए बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर अवार्ड मिला।

1986 में फिल्म सागर के लिए बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर अवार्ड मिला।

1995 में फिल्म 1942 : ए लव स्टोरी के लिए बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर अवार्ड मिला।

मृत्यु(RD Burman death)

 काफी लंबे समय बाद 90 के दशक की शुरुआत में उन्हें विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म ‘1942 अ लव स्टोरी’ में संगीत देने का मौका मिला. फिल्म के सारे गाने सुपरहिट साबित हुए लेकिन अफ़सोस कि इसकी कामयाबी देखने के लिए ख़ुद आर डी बर्मन ज़िंदा नहीं थे. वो अपनी ‘आख़िरी सफलता’ को देखने से पहले ही दुनिया से विदा हो चुके थे.

 चार जनवरी 1994 को 55 साल की आयु में उनका निधन हो गया था. फिल्म के गीत लिखने वाले जावेद अख़्तर कहते हैं, “पंचम एक ऐसा शख़्स था, जिसने अपने आपको संगीत का बादशाह साबित किया. फिर उससे वो ताज छिन भी गया लेकिन उसने ‘1942’ में शानदार संगीत देकर फिर से साबित कर दिया कि साहब संगीत का शहंशाह तो वही है. अफसोस कि उस बादशाह की जान तख्त पर दोबारा बैठने से पहले ही निकल गई.”

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