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कौन है Praful Khoda Patel? क्यों बने हुए हैं सुर्खियों में ?जानें क्या है वजह।

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गोंदिया के कारोबारी और कांग्रेसी नेता स्व. मनोहरभाई पटेल के बेटे प्रफुल्ल पटेल का जन्म 17 फरवरी 1957 को कोलकाता में हुआ था। वे यूनिवर्सिटी ऑफ़ बॉम्‍बे, महाराष्‍ट्र से स्‍नातक हैं।

सियासत में एंट्री।

प्रफुल्ल पटेल को शरद पवार का दाहिना हाथ माना जाता रहा है. लेकिन वो शरद पवार के करीब पहुंचे कैसे, इसकी एक दिलचस्प कहानी है. 50, 60 और 70 के दशक में पूर्व उप-प्रधानमंत्री यशवंत राव चव्हाण को महाराष्ट्र की सियासत का सबसे बड़ा नेता माना जाता था.

खासकर तब, जब 1960 में बंबई राज्य का महाराष्ट्र और गुजरात में विभाजन हो गया, और मोरारजी देसाई जैसे बड़े नाम गुजरात से आने वाले नेता कहलाने लगे. उसी दौर में विदर्भ इलाके से आने वाले एक नेता हुआ करते थे. नाम था मनोहर भाई पटेल. मनोहर भाई गोंदिया सीट के कांग्रेसी विधायक थे. यशवंतराव चव्हाण के खांटी समर्थक थे. उन्हीं दिनों बारामती का एक काॅमर्स ग्रेजुएट भी चव्हाण के सान्निध्य में सियासत के दांव-पेच सीख रहा था. नाम था शरद पवार.

यशवंत राव चव्हाण के यहां शरद पवार और मनोहर भाई पटेल दोनों की बैठकी लगती. कभी-कभार मनोहर भाई अपने साथ अपने बेटे प्रफुल्ल को भी लेकर पहुंच जाते.

लेकिन इसी दरम्यान मनोहर भाई पटेल का 1970 में निधन हो गया. तब प्रफुल्ल पटेल सिर्फ 13 बरस के थे. यही वह दौर था, जब शरद पवार महाराष्ट्र की राजनीति में मजबूती से अपने पैर जमाते दिख रहे थे.

पिता के निधन के बाद प्रफुल्ल पटेल ने अपनी पढ़ाई पूरी की. और फिर शरद पवार से जुड़ गए. उन दिनों शरद पवार के दरबार में 2 युवा नेताओं की खूब चलती थी. एक थे प्रफुल्ल पटेल और दूसरे थे सुरेश कलमाड़ी.

लेकिन 90 का दशक आते-आते सुरेश कलमाड़ी शरद पवार का भरोसा गंवा बैठे. हां, प्रफुल्ल पटेल की शरद पवार से नजदीकी में कोई कमी नहीं आई. 1985 में प्रफुल्ल पटेल गोंदिया म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के चेयरमैन बन गए.

फिर आया 1991 का साल. चंद्रशेखर सरकार अकाल मृत्यु की शिकार हो गई. दसवीं लोकसभा का चुनाव सिर पर था. ऐसे में महाराष्ट्र के उस वक्त के मुख्यमंत्री शरद पवार ने विदर्भ इलाके की भंडारा लोकसभा सीट से प्रफुल्ल पटेल को कांग्रेस का टिकट दिलवा दिया. प्रफुल्ल जीत भी गए. लेकिन उनके गुरू शरद पवार प्रधानमंत्री पद की दौड़ में पीवी नरसिंह राव से मात खा गए.

हालांकि 7 रेसकोर्स रोड (प्रधानमंत्री आवास) की गाड़ी छूटने के बावजूद पवार दिल्ली आ गए. रक्षा महकमे की जिम्मेदारी के साथ. ये वो दौर था, जब शरद पवार को नरसिंह राव के उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जाता था. उनके आसपास और खासकर दिल्ली-मुंबई के उनके आवास पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और समाज के अलग-अलग क्षेत्र के लोगों का जमावड़ा लगा रहता था. इन सब जमावड़ों और इंतजामात पर एक आदमी की बहुत पैनी नजर रहती थी. वो आदमी थे, प्रफुल्ल पटेल.

उस दौर में शरद पवार की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के बारे में ख़ुद प्रफुल्ल पटेल ने कुछ महीनों पहले कहा था-

‘शरद पवार कांग्रेस की दरबार संस्कृति के कारण कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री नहीं बन सके.’

लेकिन इसी दौर में, यानी 90 के दशक में शरद पवार के सान्निध्य में प्रफुल्ल पटेल की धमक दिल्ली में बढ़ने लगी. इसी धमक के बीच वह 1996 और 1998 का लोकसभा चुनाव भी जीत गए. भले ही इन दोनों चुनावों में उनकी कांग्रेस पार्टी लोकसभा में दूसरे नंबर की पार्टी बन गई थी.

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पवार के कांग्रेस छोड़ने के बाद पटेल का रसूख कैसे बढ़ा?

यह 1998-99 का साल था. शरद पवार बारामती से कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता थे. अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे. लेकिन साल बीतते-बीतते वाजपेयी सरकार गिर गई. तब कांग्रेस पार्टी ने सरकार बनाने की कोशिश शुरू की. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति के.आर. नारायणन के सामने सरकार बनाने का दावा पेश करते हुए कहा, ‘मेरे पास 272 सांसदों का समर्थन है.’ लेकिन जब राष्ट्रपति ने समर्थन पत्र मांगा तो कांग्रेस ने हाथ खड़े कर दिए. नतीजतन मध्यावधि चुनाव की नौबत आ गई.

इस पूरी कवायद में एक बात साफ हो गई कि विपक्ष के नेता शरद पवार अब कांग्रेस में रहकर प्रधानमंत्री नहीं बन सकते. नतीजतन 3 सप्ताह बीतते-बीतते शरद पवार ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाकर कांग्रेस पार्टी में विद्रोह का बिगुल फूंक दिया. इसके बाद उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया. उसके बाद उन्होंने अपनी नई पार्टी खड़ी कर दी. नाम रखा गया नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी. शॉर्ट में कहें तो NCP.

उस दौर में सभी पार्टियों में एक से एक पाॅलिटिकल मैनेजर भरे पड़े थे. प्रमोद महाजन, पी.आर. कुमारमंगलम, अमर सिंह, कमलनाथ, अहमद पटेल जैसों की तब तूती बोलती थी. ऐसे में शरद पवार को भी एक ऐसे पाॅलिटिकल मैनेजर की जरूरत थी, जो महाराष्ट्र में उनके समीकरणों को साधने के साथ-साथ दिल्ली की सियासत के चाल, चरित्र और चेहरे को भी समझता हो. इस काम के लिए पवार के भरोसेमंद लोगों की टोली में प्रफुल्ल पटेल से बेहतर नाम कोई और नहीं दिख रहा था.

प्रफुल्ल पटेल को दिल्ली की सियासत की समझ तो थी ही, विदर्भ के इलाके में जहां NCP को कमजोर समझा जाता है, वहां वह पार्टी के एक मजबूत चेहरे की कमी को भी पूरा कर रहे थे. लेकिन NCP में जाने के बाद लोकसभा उनके लिए दूर की कौड़ी बन चुकी थी. फिर भी साल 2000 में शरद पवार उन्हें राज्यसभा लेकर गए, जहां से वो लगातार चौथी बार राज्यसभा में हैं.

अंडरवर्ल्ड से कनेक्शन का आरोप ।

प्रफुल्ल पटेल का 2019 में प्रवर्तन निदेशालय (ED) से पाला पड़ा. ED के दस्तावेजों के मुताबिक, प्रफुल्ल पटेल और उनकी पत्नी वर्षा पटेल एक कंपनी चलाते हैं. इस कंपनी का नाम है मिलेनियम डेवलपर्स. पटेल दंपति की इस कंपनी ने अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के करीबी इकबाल मिर्ची के मुंबई में एक प्लाॅट पर बिल्डिंग बनवाई. ऐसे आरोप लगे कि इस बिल्डिंग में प्रफुल्ल पटेल का भी एक फ्लैट है. लेकिन प्रफुल्ल पटेल इन सब बातों से इनकार करते रहे हैं. वो इसे केन्द्र की भाजपा सरकार द्वारा राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ ED के दुरुपयोग का मामला बताते हैं.

राजनीतिक जीवन।

1985 में उन्‍हें गोंदिया (महाराष्‍ट्र) की म्‍यूनिसिपल काउंसिल का अध्‍यक्ष बनाया गया था। इसके 1991 में पटेल लोकसभा के लिए चुने गए थे। लोकसभा के इस कार्यकाल में वह पर्यावरण और वन मंत्रालय के सदस्‍य थे।

1994 से 1995 के मध्‍य वह विज्ञान और तकनीकी कमेटी के सदस्‍य भी रहे। 1996 में वह लोकसभा चुनाव में दोबारा चुने गए। इस कार्यकाल में वह वित्‍तीय मामलों की कमेटी और नागरिक उड्डयन मंत्रालय के सदस्‍य रहे। 1998 के लोकसभा चुनावों में वे तीसरी बार विजयी रहे।

इसके बाद 2000 में राज्‍यसभा के लिए निर्वाचित हुए। पटेल 1999 में राज्‍यसभा चुनाव हार गए थे और 2004 के लोकसभा चुनावों में भी वे हार गए। 2004 में उन्‍हें नागरिक उड्डयन मंत्रालय का राज्‍यमंत्री बनाया गया।

2006 के राज्‍यसभा चुनाव में उन्‍होंने जीत दर्ज की और 2009 के लोकसभा चुनावों में चौथी बार वे निर्वाचित हुए। 19 जनवरी 2011 को उन्‍हें केंद्रीय भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम मंत्री बनाया गया। राजनीतिज्ञ होने के अलावा पटेल एक सफल व्यवसायी भी हैं और नागपुर और गोंदिया में उनके कारखाने हैं।

इसके अलावा वह गोंदिया एजुकेशन सोसायटी के अध्‍यक्ष भी हैं, जिसमें लगभग 80,000 विद्यार्थी शिक्षा प्राप्‍त कर रहे हैं। वे मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन से के भी सदस्‍य हैं और ऑल इंडिया फुटबॉल फ़ेडरेशन के अध्‍यक्ष भी हैं।

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वर्तमान में क्यों बने हुए हैं सुर्खियों में।

लक्षद्वीप की 90 फीसदी आबादी मुस्लिम है. ऐसे में बीफ पर प्रतिबंध होने से क्षेत्र में तनाव बढ़ गया है. इसके अलावा देश में सबसे कम जन्म दर और सबसे कम अपराधरिक मामलों वाले इस केंद्रशासित प्रदेश में गुंडा एक्ट तथा दो से ज्यादा बच्चों वाले लोगों के पंचायत चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध के मसौदे का खूब विरोध हो रहा है.

प्रशासक प्रफुल पटेल को लेकर लक्षद्वीप में विरोध तेज हो रहा है. खबर है कि इसका कारण उनकी तरफ से लाई गई नीतियां हैं, जिसका विरोध राजनीतिक से लेकर सामाजिक स्तर पर जारी है. इसमें बीफ पर प्रतिबंध (Beef Ban)  से लेकर गुंडा एक्ट तक शामिल है. केरल की सत्तारूढ़ सीपीआई (एम) से लेकर कांग्रेस समेत काई राजनीतिक दलों ने नई पॉलिसी की आलोचना की है. साथ ही पटेल को केंद्र शासित प्रदेश में कोविड-19 (Covid-19) के बढ़ते मामलों का जिम्मेदार भी ठहराया जा रहा है.

क्या कहती हैं नई नीतियां

प्रफुल पटेल ने बीते साल दिसंबर में लक्षद्वीप के प्रशासक के तौर पर जिम्मेदारी संभाली थी. इसके बाद से उन्होंने कुछ मसौदे तैयार किए हैं. इनमें एनिमल प्रिजर्वेशन रेग्युलेशन, लक्षद्वीप प्रिवेंशन ऑफ एंटी सोशल एक्टिविटीज रेग्युलेशन, लक्षद्वीप डेवलपमेंट अथॉरिटी और लक्षद्वीप पंचायट स्टाफ रूल्स में संशोधन शामिल है.

लक्षद्वीप डेवलपमेंट अथॉरिटी को लेकर बवाल ज्यादा हो रहा है. केंद्र शासित प्रदेश में सांसद मोहम्मद फैजल इसे लोगों की जमीन हड़पने की कोशिश बताते हैं. उन्होंने कहा कि इसके बाद अथॉरिटी को मालिकों के हितों की सुरक्षा किए बगैर जमीन पर कब्जा करने की ताकत मिल जाएगी. फैजल ने कहा, ‘यहां सड़कों को नेशनल हाईवे मानकों के हिसाब से तैयार करने की कोशिश की जा रही है. लक्षद्वीप के बड़े हाईवे की जरूरत क्या है? प्रशासक यहां लोगों के व्यापारिक हितों को बढ़ा रहे हैं.’

यहां की 90 फीसदी आबादी मुस्लिम है. ऐसे में बीफ पर प्रतिबंध होने से क्षेत्र में तनाव बढ़ गया है. लक्षद्वीप की 90 फीसदी आबादी मुस्लिम है. ऐसे में बीफ पर प्रतिबंध होने से क्षेत्र में तनाव बढ़ गया है. इसके अलावा देश में सबसे कम जन्म दर और सबसे कम अपराधरिक मामलों वाले इस केंद्रशासित प्रदेश में गुंडा एक्ट तथा दो से ज्यादा बच्चों वाले लोगों के पंचायत चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध का खूब विरोध हो रहा है.

मसौदे के अनुसार, कोई भी व्यक्ति प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लक्षद्वीप में कहीं भी किसी भी रूप में बीफ या बीफ उत्पादों की बिक्री, स्टोरेज, ट्रांसपोर्टेशन नहीं करेगा. पटेल के विरोध को लेकर केरल के सीएम पिनराई विजयन ने सोमवार को कहा कहा कि प्रशासक के कामों ने केरल की संस्कृति और लक्षद्वीप के लोगों के सामने गंभीर चुनौती पेश कर दी है.

प्रशासक का पक्ष।

जबकि, पटेल का कहना है कि लक्षद्वीप ने आजादी के बाद 70 सालों से कोई विकास नहीं देखा है और उनका प्रशासन केवल इसका विकास करने की कोशिश कर रहा है. फैजल ने आरोप लगाए थे कि पटेल ने बगैर विचार विमर्श के ये ड्राफ्ट तैयार किए हैं. वहीं, प्रशासक का कहना है कि स्थानीय सांसद ने अपने विरोध को लेकर उनके साथ कोई चर्चा नहीं की है.

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